सार्वजनिक उपक्रमों को किराए के भाव पर बेचने आमादा है मोदी सरकार – माकन
रायपुर
कांग्रेस के महासचिव और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन ने केंद्र सरकार की नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन को लेकर मोदी सरकार पर हमला किया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार जनता की कमाई से पिछले 60 साल में बनाए गए सार्वजनिक उपक्रमों को किराए के भाव पर बेचने पर आमादा है। उन्होंने कहा कि सबसे चौंकाने वाली और संदेह में डालने वाली बात यह है कि यह सभी कुछ गुपचुप तरीके से तय किया गया। इसके बाद इस निर्णय की घोषणा भी अचानक से की गईं, जिससे सरकार की नीयत पर शक गहराता है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार इसका कुछ चुनिंदा उद्योगपति दोस्तों को उनके कारोबार और व्यापार में एकाधिकार का अवसर प्रदान कर रही है। बाजार में चुनिंदा कंपनियों की मनमर्जी कायम हो जाएगी। सरकार भले कहती रहेगी कि निगरानी के सौ तरह के उपाय हैं, उसके लिए नियामक संस्थाएं हैं। लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है। सरकार के तमाम नियामक प्राधिकरण और मंत्रालय उनके सामने असहाय नजर आते हैं। इससे विभिन्न क्षेत्रों में मूल्य निर्धारण और गठजोड़ बढ़ेगा। इस तरह की स्थिति इंग्लैंड बैंकिंग क्षेत्र में देख चुका है। इस मामले में हम अमेरिका से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं, जो फेसबुक, गूगल और अमेजॉन जैसी संस्थाओं पर नियंत्रण के लिए विभिन्न तरह के नियम और कानून बना रहा है। इसमें उनकी संसद और सभी नेता एक साथ नजर आते हैं। इसकी वजह यह है कि इन कंपनियों का बाजार पर वहां एकाधिकार है। इसी तरह की स्थिति चीन में भी है। वहां पर कुछ टेक कंपनियों पर शिकंजा कसने के लिए चीन की सरकार कई तरह के कदम उठा रही है।
इसकी वजह यह है कि यह कंपनियां इतनी बड़ी हो गई हैं कि इनके लिए कानून बनाना चीन की सरकार के लिए भी मुश्किल हो रहा है। दक्षिण कोरिया भी अपने यहां पर इसी तरह से एकाधिकार के खिलाफ कार्य कर रहा है। मगर, भारत में स्थिति इसके विपरीत नजर आ रही है। यहां पर मोदी सरकार कुछ चुनिंदा कंपनियों को एकाधिकार का रास्ता स्वयं बनाकर दे रही है। अगर सरकार की बात मानी भी जाए कि किसी क्षेत्र में दो या तीन कंपनियां होंगी, उसके बाद भी उनके बीच गठजोड़ को कैसे सरकार रोक पाएगी।
सरकार ने 12 मंत्रालयों के 20 परिसंपत्तियों का वर्गीकरण करते हुए इन्हें निजी क्षेत्र को सौंपने के लिए चिह्नित किया है। इनका सांकेतिक मौद्रिक मूल्य सरकार ने छह लाख करोड रुपए दिखाया है। इन परिसंपत्तियों के निर्माण में पिछले 70 साल के दौरान अभूतपूर्व मेहनत, बुद्धि और निवेश लगाया गया है। यह सभी परिसंपत्तियों अमूल्य हैं, लेकिन इन सभी परिसंपत्तियों को कौडि?ों के भाव देने की तैयारी की जा रही है।
सुरक्षा और रणनीतिक हित
यूपीए शासनकाल में यह निर्णय किया गया था कि रणनीतिक परिसंपत्तियों का निजीकरण नहीं किया जाएगा। रेलवे लाइन, गैस पाइपलाइन को लेकर विशेष सतर्कता रखी जाती थी। उनको लेकर हमेशा एक सुरक्षात्मक दृष्टिकोण रखा गया, जिससे वह निजी हाथों में जाने से बची रहीं। किसी भी तरीके से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी विदेशी शक्ति के हाथों में यह रणनीतिक परिसंपत्तियों न जाने पाएं।
रेलवे का यह होगा–रेलवे में गरीबों और जरूरतमंदों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले स्टेशन और लाइनों को नजरअंदाज कर दिया गया है। रेलवे की जिन संपत्तियों , रेलवे स्टेशनों और रेलवे लाइनों को राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन में बेचने के लिए चिह्नित किया गया है, वे हमेशा से बेहतर और फायदे का सौदा वाली परिसंपत्ति रही हैं। निजीकरण के बाद लाभ कमाने वाले सभी रूट निजी क्षेत्र को सौंप दिए जाएंगे।