शंकर व्याख्यानमाला में क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ विषय पर व्याख्यान
भोपाल
संस्कृति विभाग के आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा शंकर व्याख्यानमाला के पैंतीसवें पुष्प का ऑनलाइन आयोजन किया गया। इस आयोजन में आर्ष गुरुकुलम् के आचार्य स्वामी साक्षात्कृतानन्द सरस्वती जी ने क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ विषय पर व्याख्यान दिया। स्वामीजी ने श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से बताया कि यह शरीर ही क्षेत्र होता है और इस क्षेत्र के ज्ञाता को ही क्षेत्रज्ञ कहते हैं। आत्मा चरण से लेकर मस्तिष्क पर्यन्त समग्र शरीर को स्वाभाविक तथा विभागपूर्वक स्पष्टतः जानता है, अत: उसे ही क्षेत्रज्ञ कहा गया है।
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ की व्याख्या करते हुए स्वामी जी ने कहा कि योगेश्वर श्रीकृष्ण ही सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ हैं तथा क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विभाजन और तत्त्वतः उनकी जानकारी का नाम ही ज्ञान है अर्थात् स्थूल, सूक्ष्म, कारण तीनों शरीरों का निरोध और उस परम पुरुष की प्रत्यक्ष अनुभूति का नाम ही ज्ञान है। इस क्षेत्र का पार पाकर उस शाश्वत पुरुष, परमतत्त्व की अनुभूति और उसमें स्थिति होती है।
स्वामी जी ने कहा कि क्षेत्रज्ञ अलग-अलग नहीं होते। विकारों सहित प्रकृति और पुरुषत्व की साक्षात् अनुभूति जो भी कर लेता है, वह क्षेत्रज्ञ बन जाता है। जैसे एक सूर्य सारे जगत को प्रकाशित करता है, वैसे ही क्षेत्रज्ञ सब क्षेत्र को यानि शरीर को प्रकाशित करता है। परमेश्वर की यह प्रकृति दो प्रकार की है – अपरा तथा परा। अपरा प्रकृति का ही दूसरा नाम क्षेत्र तथा क्षर पुरुष है। परा प्रकृति का ही दूसरा नाम क्षेत्रज्ञ तथा अक्षर पुरुष है।
व्याख्यान का सीधा प्रसारण न्यास के फेसबुक और यूट्यूब चैनल पर किया गया। इसमें चिन्मय मिशन, आर्ष विद्या मंदिर राजकोट, आदि शंकर ब्रह्म विद्या प्रतिष्ठान उत्तरकाशी, मानव प्रबोधन प्रन्यास बीकानेर, हिन्दू धर्म आचार्य सभा, मनन आश्रम भरूच आदि संस्थाएँ भी सहयोगी रहीं। न्यास द्वारा प्रतिमाह शंकर व्याख्यानमाला के अंतर्गत वेदान्त विषयक व्याख्यान आयोजन किया जाता है। इच्छुक व्यक्ति वीडियो लिंक – https://youtu.be/-m5HsF0-U8I के माध्यम से व्याख्यान का लाभ ले सकते हैं।