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रायपुर,02 सितम्बर 2021: कोदो-कुटकी व रागी प्रसंस्करण से समूह की महिलाओं को मिला अच्छा प्रतिसाद

केवल छह माह में 2.36 लाख रूपये की कमाई

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राज्य सरकार किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने हर संभव प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा धान सहित कोदो-कुटकी को समर्थन मूल्य में खरीदी तथा रूरल इंडस्ट्रियल प्लान के तहत स्थापित प्रसंस्करण इकाई से ग्रामीणों को अच्छी आमदनी हो रही है। कांकेर जिला प्रशासन के सहयोग से कृषि विज्ञान केन्द्र कांकेर में कोदो-कुटकी, रागी व अन्य लघु धान्य फसलों के लिए प्रसंस्करण इकाई की स्थापना की गई है। इस प्रसंस्करण इकाई का लोकार्पण  मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा 27 जनवरी 2021 को किया गया। स्थापना के केवल छह माह में ही प्रसंस्करण इकाई में कार्यरत स्व सहायता समूह की महिलाओं को लगभग दो लाख 36 हजार रूपए की कमाई हो चुकी हैं।
गौरतलब है कि दुर्गम आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कम उपजाऊ, उच्चहन एवं कंकरीली जमीन पर किसानों द्वारा कोदो-कुटकी, रागी की फसल ली जाती है। ऐसे जमीनों में अन्य फसलों का उत्पादन अच्छे से नहीं हो पाता है। कोदो-कुटकी, रागी में पोषक तत्व प्रचूर मात्रा में पाया जाता है। इन्हीं गुणों को ध्यान में रखते हुए इन फसलों के उत्पादन एवं प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कांकेर में लघु धान्य (कोदो-कुटकी, रागी) प्रसंस्करण इकाई की स्थापना की गई है। स्थापना के बाद से ही इस प्रसंस्करण इकाई में लगातार कोदो-कुटकी एवं रागी का प्रसंस्करण किया जा रहा है। विगत छह माह में प्रसंस्करण इकाई से 450 क्विंटल प्रसंस्कृत कोदो-कुटकी एवं रागी मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के अंतर्गत आंगनबाड़ी केन्द्रों को प्रदाय किया जा चुका है, जिससे इस कार्य में जुड़े स्व सहायता समूह की महिलाओं को 02 लाख 36 हजार रूपये की आमदनी प्राप्त हुई है।
प्रसंस्करण इकाई के संचालन के लिए लघु धान्य फसलों का उत्पादन करने वाले क्षेत्र के  किसानों एवं महिलाओं का समूह बनाया गया है। समूह के माध्यम से कृषकों के उत्पाद को संग्रहण कर प्रसंस्करण इकाई में महिला समूह द्वारा प्रसंस्करण कर पैकेजिंग किया जा रहा है। इस उत्पाद को जिले की आंगनबाड़ियोें के माध्यम से रक्त अल्पतता से ग्रसित व गर्भवती महिलाओं तथा कुपोषित बच्चों को ‘कोदो चांवल की खिचड़ी’ रागी का हलवा के रूप में प्रदाय किया जा रहा है। मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान से महिलाओं एवं बच्चों को जहां लघु धान्य फसलों के प्रसंस्कृत उत्पाद से पौष्टिक एवं गरम भोजन मिल रहा है, वहीं संग्रहण एवं प्रसंस्करण कार्य में लगीं महिलाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार भी प्राप्त हो रहा है।

 

 

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