राजस्व के जंगल को सिटी फॉरेस्ट डेवलप करने की प्लानिंग
भोपाल
भोपाल के नजदीक बढ़ रहे बाघों की संख्या को देखते हुए अब मिंडोरा, चंदनपुरा की राजस्व भूमि में लगे जंगल को संरक्षित कर वहां पर सिटी फॉरेस्ट डेवलप करने के लिए वन विभाग ने योजना बनायी है। ताकि राजस्व की जमीन पर भी होने वाले कब्जों को रोका जा सके।
वन विभाग यहां घूम रहे बाघों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। यदि वन विभाग को राजस्व भूमि का जंगल मिलता है तो बाघों के लिए लॉन्ग टर्म एक्शन प्लॉन बनाने में आसानी होगी। अभी कलियासोत से लेकर केरवा तक घूम रहे बाघों के लिए कोई पेट्रोलिंग के अलावा कोई भी एक्शन प्लान नहीं है। इस समय बाघों के मूवमेंट को देखते हुए राजस्व विभाग ने वन विभाग को जमीन देखरेख के लिए तो दे दी है, लेकिन अभी तक वन विभाग आधिपत्य नहीं मिला है।
कलियासोत से लेकर केरवा तक 673 हेक्टयेर भूमि राजस्व विभाग की है। इसमें से विभाग ने 357 हेक्टयेर जमीन की देखरेख की जिम्मेदारी वन विभाग को दी है। सीपीए को प्लांटेशन के लिए 250 हेक्टयेर जमीन दी गई थी। इसमें 66 हेक्टयेर भूमि अभी भी राजस्व के पास है। भोपाल वन मंडल के सीसीएफ रविन्द्र सक्सेना के अनुसार यदि यह जमीन वन विभाग को मिल जाती है तो शहर के नजदीक का जंगल संरक्षित होगा। जंगल की सुरक्षा के लिए वन विभाग की जबावदेही तय हो जाएगी और यहां पर होने वाले अवैध कब्जों पर भी लगाम लगाई जा सकेगी।
वन विभाग के डीएफओ आलोक पाठक का कहना है कि कलियासोत से केरवा तक निजी भूमि, राजस्व भूमि, वन भूमि और सीपीए की जमीन का स्पष्ट सीमांकन होना चाहिए। इससे यहां बढ़ रहे अतिक्रमण को रोका जा सकता है। वन विभाग को राजस्व विभाग ने जो जमीन दी है वहां तो जंगल बच गया है, लेकिन जो जंगल राजस्व विभाग की भूमि पर है। वहां लगातार अतिक्रमण हो रहा है। इसको रोका जाना जरूरी है।