मुंबई में एक अनजान शख्स ने कोरोना के 25 मरीजों की जिंदगी बचा ली
मुंबई
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के लीलावती अस्पताल में पल्मोनॉलजिस्ट डॉ. जलील पारकर कोरोना वायरस से संक्रमित थे। 5 दिनों तक आईसीयू में रहने के बाद उनकी जान बचाई जा सकी। 200 से ज्यादा कोरोना मरीजों का इलाज कर चुके डॉ. पारकर जब खुद जीवन के संकट से जूझ रहे थे, तब उन्हें एक ऐसी दवा का साथ मिला, जिसके बिना उनका जीवन बचाना मुश्किल लग रहा था।
डॉ. पारकर ने बताया कि जिस 'वंडर ड्रग' रेमेडेसिविर से उनकी जान बची, उसे 53 साल के एक अज्ञात शख्स ने उन्हें उपलब्ध कराया था। सिर्फ पारकर ही नहीं, एक आईएएस समेत 25 लोगों की जान बचाने के लिए इस दवा का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि, जिस शख्स ने 25 लोगों को अपने खर्चे पर यह महंगी और दुर्लभ दवा उपलब्ध कराई, उसने अपनी पहचान जाहिर करने से मना कर दिया।
डॉ. पारकर ने बताया कि मददगार शख्स के 83 साल के पिता कोरोना से संक्रमित थे। वह लीलावती अस्पताल में भर्ती थे। उनकी जान बचाने के लिए शख्स ने अपने संपर्कों के जरिए निजी खर्चे पर रेमेडेसिविर की 10 शीशियां बांग्लादेश से मंगाई थीं। ये शीशियां पहले बांग्लादेश से कोलकाता डिलिवर की गईं। उसके बाद उसे मुंबई लाया गया था। बताया गया कि इस दवा को मंगाने में 5 लाख का खर्च आया था, जिसे शख्स ने खुद वहन किया था।
देश में 22 जून तक कुल 71,37,716 सैंपल्स टेस्ट किए जा चुके हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के मुताबिक, 1,87,223 सैंपल्स सोमवार को टेस्ट किए गए। कुछ हजार से शुरुआत होकर आज हम प्रतिदिन दो लाख टेस्ट करने पर पहुंच गए हैं।
नहीं बची पिता की जान
बांग्लादेश से मंगाई गई 10 में से 5 शीशियां मददगार शख्स के पिता के इलाज में लगीं। हालांकि, अब काफी देर हो चुकी थी और उनके पिता को इन दवाओं के सहारे नहीं बचाया जा सका। कोरोना से उनकी मौत हो गई।
पिता की मौत के बाद उन्होंने बची हुई दवा के जरिए दूसरे कोरोना मरीजों की मदद करने का फैसला किया। उन्होंने दवा की बची हुई शीशियां कोरोना संक्रमण की गंभीर अवस्था से लड़ रहे लोगों के लिए दे दीं। लाभार्थियों में डॉ. पारकर के अलावा उनकी पत्नी, एक आईएएस अधिकारी समेत 25 लोग शामिल हैं। अनजान लोगों की मदद करने वाले शख्स ने बताया कि उनके पिता को पहले कोई बीमारी नहीं थी। उन्हें उस वक्त काफी गुस्सा आया था, जब दवा की कमी के चलते उनके पिता की मौत हो गई।