मसाले व बिस्कुट निर्माण से लेकर कुक्कूट पालन में महिलाएं बढ़ चढ़ कर दे रहीं हैं अपना योगदान
कोण्डागांव
जो महिलाएं कल तक जहां खेती मजदूरी या फिर वनोपज संग्रहण करके अपना जीवन यापन कर रही थीं। आज वहीं सीधी सरल ग्राम्य महिलाएं स्वरोजगार के ऐसे क्षेत्रो में प्रवेश कर रही हैं जिसके बारे में पहले किसी ने सोचा तक न था और तो और एक निश्चित आमदनी उनके हाथ में होने से इन महिलाओं के आत्मविश्वास में भरपूर इजाफा हुआ है। घर परिवार की होने वाली आय में अब इनका योगदान एक महत्वपूर्ण उपलब्धि साबित हो रहा है। यह चमत्कार हुआ राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के माध्यम से। इस चमत्कार का सकारात्मक प्रभाव विकासखण्ड कोण्डागांव के एक छोटे से गांव बोलबोला की तुलसी स्व-सहायता समूह की सदस्यों पर भी हुआ है।
ज्ञात हो कि कोण्डागांव जिले में बिहान अंतर्गत जिला प्रशासन द्वारा संचालित उड़ान नामक संस्था महिला स्वरोजगार के क्षेत्र में कार्यरत् है। इस संस्था के माध्यम से महिलाओं को स्वरोजगार एवं स्वालम्बन के विभिन्न नये-नये क्षेत्रों से प्रशिक्षित किया जाता है। उड़ान संस्थान से प्रशिक्षित ग्राम बोलबोला की तुलसी स्व-सहायता समूह द्वारा वर्तमान में कुल 12 निर्माण गतिविधियों में अपना योगदान दे रहा है। जिनमें मसाले निर्माण, कुकीज, बेकरी, बिस्किट, आचार, दोना-पत्तल निर्माण, नॉन वूलन बैग, स्लीपर निर्माण जैसे कार्य सम्मिलित है। इस स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष सुश्री संतोषी नेताम बताती हैं कि उनके समूह में कुल 70 महिलाएं कार्यरत् हैं। इनमें से अधिकतर घरेलु अथवा न्यूनतम बारहवीं तक शिक्षा प्राप्त महिलाएं हैं, जो पहले सिर्फ घर गृहस्थी अथवा खेती-किसानी का कार्य ही करती रही हैं परन्तु अब स्थिति बदल चुकी है। इस समूह में न केवल ग्राम बोलबोला की महिलाएं ही शामिल हैं बल्कि आस-पास के ग्राम बड़ेकनेरा, झड़ेबेंदरी, करंजी, कोकोड़ी, जोंधरापदर, सम्बलपुर की महिलाएं भी उत्साहपूर्वक कार्यरत् हैं। इन सब कार्य हेतु महिलाओं को प्रतिदिन 200 रुपए की आय हो रही है। जिससे इनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई है।
इसी प्रकार एक अन्य ग्राम कुकाडगारकापाल में भी तीन महिला समूह मॉ बम्लेश्वरी, मॉ दंतेश्वरी और शीतला समूह की 32 सदस्य महिलाएं कुक्कूट पालन करके अण्डा उत्पादन के क्षेत्र में अपनी उपलब्धि अर्जित की है। अपने भविष्य के योजनाओं के संबंध में उनका कहना था कि अभी मुर्गियां आंध्रप्रदेश से मंगाई जा रही है। जिनकी खरीदी एवं परिवहन में अधिक खर्च हो रहा है अगर जिला प्रशासन द्वारा स्थानीय स्तर पर उन्हें मुर्गियां उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है तो खरीदी और परिवहन पर व्यय में कमी आएगी। जिसका सीधा लाभ महिलाओं को मिलेगा। उन्होंने यह भी बताया कि उनके द्वारा विक्रय किये गये अण्डों को जिले के आंगनबाडि?ों में खपत किया जाता है।