ग्वालियरमध्य प्रदेश

भूदान पट्टों की जमीनों का करोड़ों में सौदा, प्रमुख सचिव राजस्व से आई जांच में लीपापोती

Spread the love

शिवपुरी
प्रदेश के शिवपुरी जिले में शासकीय भूमि को निजी स्वामित्व में देना, भूदान की जमीनों को खुर्द.बुर्द कर करोड़ों का कारोबार करना अथवा वक्फ बोर्ड और मन्दिर की जमीनों पर कॉम्पलैक्स खड़े कराना यह सब धड़ल्ले से जिले भर में चल रहा है। प्रशासन यहां तमाशाई की भूमिका में है। भूमाफि या इस कदर हावी है कि प्रशासनाधीशों से लेकर मंत्री तक की सुनवाई नहीं हो रही। शिवपुरी में भूदान की जमीनों पर धन्ना सेठ काबिज हो चुके हैं, भ्रष्टाचार की आहुतियों के साथ भूदान यज्ञ की जमीनों को यहां स्वाहा कर डाला गया है। शिवपुरी जिले में सैंकड़ों वीघा जमीन जो भूदान खाते की थी आज भूदान पट्टेधारियों की बजाये यह भूमि करोड़ों में धन्ना सेठों की मिल्कीयत बन चुकी है। राजस्व के पटवारियों से लेकर आला अफ सरों ने आपराधिक साजिश के साथ इस जमीन को खुर्दबुर्द करने और कराने में भू माफि याओं के हमजोली की भूमिका निभाई है। मामले की जांच हो तो अकेले शिवपुरी में ही करीब तीन सौ करोड़ रुपये मूल्य की भूमि मुक्त कराई जा सकती है।

बानगी के तौर पर शहर के नजदीकी क्षेत्र आगरा.मुम्बई हाइवे पर ककरवाया ही गौर करें तो यहां करीब 375 बीघा भूमि पर दलित, आदिवासी, और अन्य कमजोर वर्ग के भूदान कृषकों को कृषि पट्टे दिए गए थे मगर आज यहां इन पट्टेदारों का कोई लेखा जोखा वर्तमान अभिलेखों में नहीं है यहां धनपति नेता और अफसरों के परिजन काबिज हो चुके हैं। कुछ उदाहरण से स्थिति समझते हैं। यहां पुराने सर्वे क्रमांक 629/1 का नया सर्वे क्र 827, 629/2 का 826, 629/3 का 825, 629/4 का 824, 629/5 का 823, 629/6 का 883, 629/7 का 882, 629/8 का 881, 629/9 का 880, 629/10 का 879, 629/11 का 878, 629/12 का 877, 630/1 का 815 630/2 का 816ए 630/3 का 817, 630/4 का 818, 630/5 का नया सर्वे नं 819, 630/8 का 820, 630/7 का 821, 630/8 का 822, 630/9 का 885, 630/10 का 884, 630/12 का 890, 631 का 811/924 628/12 का नया सर्वे नं 876 628/11 का 875, 628/1 का 890, 628/2 का 891 628/3 का 892ए 628/4 का 893 628/5 का 894, 628/6 का 895 628/7 का 896, 628/8 का 897 628/9 का 898, 628/10 का 899, 634 आदि सहित कई नम्बरों पर बड़े पैमाने पर पट्टे दिये गये थे जो कि भूदान बोर्ड समापन उपरांत विक्रित हो चुके हैं। जबकि यह भूमि विक्रय से वर्जित भूमि थी। ककरवाया की पटवारी हल्का नं 57 की भूमि के 18.18 बीघा के पट्टे, भुज्जी, विशुनलाल, रतन, किशनलाल, नेवाजी काछी, ठाकुरलाल, दबरिया, बाबू काछी, कन्हैयालाल, रामलाल, पूरन, सोडू, भदई, चोखरिया, मंगलिया, ग्यासी कोली, लोहरे, परसादी, हरकिशन, परमा, अमरलाल, खच्चू, प्रभू आदि को प्रदान किये गये और ये तमाम पट्टे 3 अगस्त 1987 को सचिव भूदान बोर्ड भोपाल के आदेश से निरस्त भी कर दिये गये जिसके बाद यह भूमि शासकीय हो गई मगर विक्रय से वर्जित बनी रही। इसके साथ ही शुरु हुआ गोलमाल का खेल जिसमें रिकार्ड की हेराफेरी कर यह जमीन शहर के नामचीन लोगों के निजी स्वामित्व की भूमि में तब्दील हो चुकी है।

उदाहरणार्थ 629/4 का नया सर्वे 823 की भूमि श्रीमती गिरजा के नाम आ चुकी है। इसी प्रकार सर्वे क्रमांक 824 की भूमि भी इन्हीं के नाम वर्तमान में दर्ज है। सर्वे क्रमांक 825 की भूमि अब अमित जैन बगैरह के नाम दर्ज है। 827 की भूमि रामजीलाल बगैरह के नाम दर्ज की गई है। सर्वे 828 की भूमि पर राजकुमार गुप्ता का नाम दर्ज हो गया इसके बाद यह जमीनें विकना शुरु हो गया। ककरवाया में हुए भूदान जमीनों के गोलमाल में कई बड़े खुलासे रह.रहकर सामने आ रहे हैं। सर्वे नंबर 543 की जो भूमि 1968.69 में धनुआ आदिवासी के नाम थी और 1988.89 में भी यह भूमि विक्रय से वर्जित होकर धनुआ के नाम पर थी वह 2008 की स्थिति में विष्णु कुमार पुत्र मदनलाल गोयल निवासी शिवपुरी की हो गई। इसी प्रकार अमरलाल पुत्रवन लाल की भूमि सर्वे नंबर 550 विक्रय से वर्जित होने के बावजूद 1988- 89 की अभिलेख में विष्णु कुमार गोयल के नाम दर्ज हो गई। गंगापुत्र जरुआ आदिवासी की सर्वे नंबर 554 की भूमि विक्रय से वर्जित होने के बावजूद 2007.08 की स्थिति में हरिमोहन के नाम पर दर्ज हो गई इसके अन्य सर्वे नंबर भी जांच की जद में हैं जिनमें सर्वे क्रमांक 536 सर्वे क्रमांक 537 सर्वे क्रमांक 538 यह सभी विक्रय से वर्जित होने के बावजूद धनुआ के हाथ से जाकर आज निजी भूमि में तब्दील हो चुके हैं। सर्वे नंबर 589 भूदान कृषक धनुआ आदिवासी के नाम पर था वर्ष 88.89 में विक्रय से वर्जित होने के बावजूद यह विमल कुमार जैन के नाम जा पहुंचा। खच्चू जाटव की सर्वे नंबर 625 की भूमि अधिकार अभिलेख देखें तो यह सर्वे नंबर 863 में परिवर्तित होकर हमेश चंद्र साहनी के नाम हो गया जो कि आगरा उप्र निवासी थे और वर्तमान में यह सर्वे नंबर 863 होकर प्रभा देवी पत्नी सुरेश कुमार के नाम दर्ज हो चुका है यह सभी विक्रय से वर्जित जमीन थी।

कन्हैया काछी की सर्वे नंबर 786 की भूमि 8889 में रामजीलाल पुत्र नारायण अग्रवाल के नाम जा पहुंची बाद में यह सर्वे 798 वर्ष 2007 में नारायण के नाम दर्ज है। यह सब तब्दीली किस प्रकार हुई है यह अपने आप में जांच का विषय है, क्योंकि पट्टों की प्रदायगी और भूमि के कब्जे धारकों के परिवर्तन के अपने मापदण्ड और नियम हैं। भूदान की यह जमीन अब राजस्व खाते की बताई जाकर यह उलटफेर कर दिया गया है। इससे लगी 788 सर्वे नम्बर की चरनोई भूमि की निजी स्वामित्व में जा चुकी है 630, 631 नम्बर की भूदान की जमीन की वर्तमान स्थिति भी जांच की जद में आ गई है। इसी क्षेत्र में सर्वे क्रमांक 644,646 भी खुर्दबुर्द की जा रही है। भूदान की भूमि टुकड़े.टुकड़े होकर अब लाखों रूपये बीघा तक के भाव बिक रही है।

जिले भर में भूदान की जमीनों का गोलमाल जिस पैमाने पर किया गया है वह प्रदेश स्तर पर जांच की बड़ी आवश्यकता प्रतिपादित कर रहा है क्योंकि इस खेल में कांग्रेस और भाजपा के कई प्रभावशाली नेता गले गले तक डूबे हैं और कई पूजी पतियों के नाम भी यह जमीन पहुंच गई है नौकरशाहों ने भी इस लूटा मारी में जमकर भ्रष्टाचार किया है। नतीजतन 2007 से शुरू की गई जांच 2021 में भी अधूरी पड़ी हुई है फाइलें कलेक्टर कार्यालय में धूल खा रही हैं।

मध्यभारत भूदान यज्ञ परिषद द्वारा निर्बन्धों में यह साफ उल्लेखित है कि पट्टा गृहिता स्वयं खेती करेगा, भूमि के किसी भी हित का अन्तरण नहीं करेगा, ठेके पर दूसरों को भूमि नहीं उठायेगा, दो वर्ष से अधिक पड़त नहीं रहने देगा, भूदान यज्ञ विधान की धारा 28 और 29 के अधीन भू आगम की रकम मध्यभारत सरकार को तय सीमा में चुकायेगा। ऊपर वर्णित प्रतिबंधों का उल्लंघन करने पर वह भूमि से बेदखल माना जायेगा और भूमि पर भूदान यज्ञ परिषद का आधिपत्य हो जायेगा। इन प्रावधानों को दरकिनार कर राजस्व और बंदोवस्त के अफ सरों, पटवारियों ने यहां ऊंचा खेल खेल डाला, खसरों से धीरे.धीरे भूदान्य और विक्रय से वर्जित शब्द ही विलोपित कर दिया और विक्रय से वर्जित यह सैंकड़ों वीघा भूमि भू कारोबारियों को बेच डाली गई।

आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि मामला सामने आने के बावजूद किसी भी अधिकारी ने इस ओर देखना तक मुनासिब नहीं समझा। स्थिति यह है कि एक से दूसरे के नाम बिकते.बिकते जमीन के मूल पट्ड्ढटेदार दस्तावेजों से गायब हैंं। भूमि की कैफि यत बदली जा चुकी है तो चंद पट्टेधारी अपनी जंग लड़ रहे हैं।

 

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Back to top button
Close