भारतीय सेना को हर साल आपसी विवाद और तनाव के कारण खोना पड़ रहा सैनिक
नई दिल्ली
भारतीय सेना को हर साल दुश्मन की कार्रवाई के मुकाबले आत्महत्या, आपसी विवाद और अप्रिय घटनाओं के चलते अपने ज्यादा सैनिकों को खोना पड़ रहा है। मौजूदा समय में उसके आधे से ज्यादा सैनिक गंभीर तनाव में हैं।
थिंक टैंक युनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (यूएसआई) के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि सेना हर साल खुदकुशी व अन्य घटनाओं के चलते करीब 100 से ज्यादा सैनिक यानी हर तीसरे दिन एक सैनिक को खो रही है। इसके अलावा तनाव के चलते सैनिक उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारी, मनोविकार, न्यूरोसिस व अन्य बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।
यूएसआई के सीनियर रिसर्च फेलो कर्नल ए के मोर का कहना है कि भारतीय सैनिकों के लंबे समय तक आतंकवाद और विद्रोह रोधी माहौल में रहना तनाव बढ़ने के प्रमुख कारकों में से एक है। बीते दो दशक में ऑपरेशनल व नॉन ऑपरेशनल कारणों से भारतीय सैनिकों में तनाव का स्तर बढ़ा है।
यूएसआई की वेबसाइट पर पिछले महीने अपलोड किए गए अध्ययन में कहा गया है कि बीते 15 वर्षों में भारतीय सेना और रक्षा मंत्रालय ने तनाव कम करने के विभिन्न उपायों को लागू किया, लेकिन इसके नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे।
तनाव के चलते इकाइयों व उप इकाइयों में अनुशासनहीनता, प्रशिक्षण की असंतोषजनक स्थिति, उपकरणों का अपर्याप्त रखरखाव की घटनाएं बढ़ी हैं और मनोबल गिरने के कारण उनकी लड़ाकू तैयारियों और ऑपरेशनल प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
अध्ययन के मुताबिक, बडे़ पदों पर तैनात अधिकारी भी इससे अछूते नहीं है। उनमें तनाव बढ़ने के प्रमुख कारणों में नेतृत्व की गुणवत्ता में कमी, प्रतिबद्धताओं का बोझ, अपर्याप्त संसाधन, पोस्टिंग व पदोन्नति में पारदर्शिता व निष्पक्षता की कमी और अव्यवस्थाएं शामिल हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि जेसीओ और अन्य रैंक के अधिकारी छुट्टी न मिलने या मिलने में देरी, अत्यधिक व्यस्तता, घरेलू समस्याएं, वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अपमान, गरिमा की कमी, मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर अनुचित प्रतिबंध, मनोरंजन सुविधाओं में कमी के चलते तनाव बढ़ रहा है।