पोषण कार्नर: MP के आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को मिलेंगे लड्डू और नमकीन

भोपाल
मध्य प्रदेश के आंगनबाड़ी केंद्रों में अब बच्चों को लड्डू, मठरी, नमकीन, मुरमुरे, बिस्किट, भुना चना-गुड़ भी मिलेगा और इन्हें खाने के लिए किसी से पूछने और मांगने की जरूरत भी नहीं है। सरकार प्रदेश के सभी 97 हजार 135 आंगनबाड़ी केंद्रों में 'पोषण कार्नर' शुरू करने जा रही है। जिसमें यह सामग्री पारदर्शी डिब्बों में उपलब्ध रहेगी। शर्त यह है कि यह सामग्री बच्चों की पहुंच में रखी जानी चाहिए। बच्चा जब और जितना चाहे ले सकता है। यह कुपोषण की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास हैं। मध्य प्रदेश में वर्तमान में 10 लाख 32 हजार 166 कुपोषित बच्चे हैं। इनमें से छह लाख 30 हजार 90 बच्चे अति कुपोषित की श्रेणी में हैं। यह जानकारी सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र में दी थी।
करीब छह साल पहले सागर से यह प्रयास शुरू किया गया था, पर सफलता नहीं मिली। इसलिए फिर से प्रक्रिया शुरू की है। सरकार ने पोषण मटका कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषण कार्नर शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके लिए केंद्र में एक स्थान तय किया जाएगा। उसमें तीन से चार फीट की ऊंचाई पर पारदर्शी डिब्बों में यह सामग्री रखी जाएगी। ताकि भूख लगने पर बच्चा खुद उठाकर खा सके। उसे किसी से पूछने और मांगने की जरूरत भी नहीं होगी। कोई भी सामग्री 15 दिन से ज्यादा पुरानी नहीं होना चाहिए। इसके बाद भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका उनकी गुणवत्ता की जांच करेंगे। इस सामग्री को तैयार करने में गेहूं, चना, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, कोदोकुटकी का उपयोग किया जाएगा।
महिला एवं बाल विकास विभाग ने सभी सामग्री लोहे की कड़ाही में बनाने के निर्देश दिए हैं। ऐसा इसलिए ताकि बच्चों में हीमोग्लोबिन की स्थिति सुधर सके। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-पांच के अनुसार प्रदेश में छह माह से पांच साल तक के 72.7 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी पाई गई है। इस सर्वे में उन बच्चों का हीमोग्लोबिन 11 ग्राम से नीचे पाया गया है।
पोषण कार्नर में रखी जाने वाली सामग्री का इंतजाम जन सहयोग से किया जाएगा। कलेक्टरों से कहा गया है कि वे स्थानीय स्तर पर अभियान चलाकर आमजन को पोषण मटका कार्यक्रम में अनाज देने के लिए प्रेरित करें। उत्पादन के महीने में गेहूं, चना, चावल, ज्वार, बाजरा, कोदो-कुटकी, मक्का सहित अन्य स्थानीय अनाज का संग्रहण करें और इसे सुरक्षित भंडारित कराएं, ताकि हर पखवाड़े में जरूरत पड़ने पर कच्चा माल लेकर खाद्य सामग्री तैयार की जा सके।