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पोलियो की नकली खुराक से हुए विक्लांग, लेकिन अब भगवद् गीता पढकर शरद ने टोक्यो पैरालंपिक खेलों में लहराया तिरंगा

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तोक्यो
भारतीय पैरा एथलीट शरद कुमार तोक्यो पैरालिंपिक टी42 ऊंची कूद फाइनल से अपना नाम वापस लेने की सोच रहे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि वह अभ्यास के दौरान चोटिल हो गए थे। लेकिन इस मुश्किल घड़ी में भगवद् गीता ने उनका साथ दिया और वह ब्रॉन्ज मेडल जीतने में सफल रहे। फाइनल से एक रात पहले शरद ने अपनी चोट को लेकर भारत में परिवार से बात की। पटना में जन्में 29 वर्ष के शरद को सोमवार को घुटने में चोट लगी थी। शरद ने कहा कि उनके लिए यह मेडल सोने पर सुहागा की तरह है। शरद ने कहा, 'कांस्य पदक जीतकर अच्छा लग रहा है क्योंकि मुझे सोमवार को अभ्यास के दौरान चोट लगी थी। मैं पूरी रात रोता रहा और नाम वापस लेने की सोच रहा था। मैंने कल रात अपने परिवार से बात की। मेरे पिता ने मुझे भगवद गीता पढ़ने को कहा और यह भी कहा कि जो मैं कर सकता हूं , उस पर ध्यान केंद्रित करूं न कि उस पर जो मेरे वश में नहीं है।'

दो वर्ष की उम्र में पोलियो की नकली खुराक दिए जाने से शरद के बायें पैर में लकवा मार गया था। उन्होंने कहा , 'मैंने चोट को भुलाकर हर कूद को जंग की तरह लिया। पदक सोने पे सुहागा रहा।' दिल्ली के मॉडर्न स्कूल और किरोड़ीमल कॉलेज से से तालीम लेने वाले शरद ने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मास्टर्स डिग्री ली है । दो बार एशियाई पैरा खेलों में चैंपियन और विश्व चैम्पियनशिप के रजत पदक विजेता शरद ने कहा , 'बारिश में कूद लगाना काफी मुश्किल था। हम एक ही पैर पर संतुलन बना सकते हैं और दूसरे में स्पाइक्स पहनते हैं। मैं अधिकारियों से बात करने की कोशिश की कि स्पर्धा स्थगित की जानी चाहिए लेकिन अमेरिकी ने दोनों पैरों में स्पाइक्स पहने थे। इसलिए स्पर्धा पूरी कराई गई।'
 

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