भोपालमध्य प्रदेश

पंचकोष विवेक पर स्वामी अव्ययानंद सरस्वती का व्याख्यान

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भोपाल
आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा रविवार को आयोजित शंकर व्याख्यानमाला में चिन्मय मिशन के स्वामी अव्ययानंद सरस्वती जी ने 'पंचकोष विवेक' विषय पर व्याख्यान दिया। स्वामीजी चिन्मय तपोवन आश्रम, सांदीपनि हिमालय, सिद्धबाड़ी, हिमाचल प्रदेश में आचार्य हैं।

अपने भीतर ही आनंद की खोज करें
स्वामीजी ने बताया कि पंचकोष क्या हैं और कैसे हमारा स्वरूप इससे अलग है। स्वामीजी ने कहा कि हम सदैव सुख और आनंद खोजते हैं। किन्तु जो वस्तु जहाँ है, वहीं खोजने पर मिलेगी। आनंद को हम बाहर ढूँढते हैं, जबकि वह हमारे अपने भीतर है। उस आनंद का अनुभव करने के लिए, यानि अपने स्वरूप का बोध करने के लिए हमें आत्म-अनात्म विवेचन करना चाहिए। यही विवेक है।

स्वयं को कैसे जानें
हम क्या हैं यह जानने के लिए वेदांत बताता है कि हम क्या नहीं हैं, इसका विवेक होना आवश्यक है। इसलिए शरीरत्रय विवेक, अवस्थात्रय विवेक और पंचकोष विवेक पर चिंतन करना चाहिए।

क्या हैं पंचकोष?

  • स्वामीजी ने बताया कि अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष और आनंदमय कोष
  •     यह पाँच कोष हैं। मय का अर्थ विकार होता है।
  •     अन्न से हमारा पोषण और शारीरिक विकास होता है, यही अन्नमय कोष है।
  •     प्राणमय कोष पंचप्राण और पंच कर्मेन्द्रियों से बनता है। पंच प्राण (वायु) हैं
  •     प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान। पंच कर्मेन्द्रियाँ हैं
  •     हाथ, पैर, वाणी, जनेन्द्रिय व गुदा।
  •     मनोमय कोष अर्थात मन और पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा)
  •     विज्ञानमय कोष में बुद्धि और पंच ज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं।
  •     आनंदमय कोष में प्रिय (काल्पनिक आनंद), मोद (दृश्य आनंद) और प्रमोद (प्रत्यक्ष आनंद) होता है।
  • अन्नमय कोष ही स्थूल शरीर है। प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय कोष से सूक्ष्म बनता है और आनंदमय कोष से कारणशरीर।

स्वयं को जानने का वेदान्त फार्मूला
स्वामीजी ने बताया कि हमारा स्वरूप यानि आत्मा इन पंचकोषों से भिन्न हैं। हम यह नहीं हैं। स्वामीजी ने कहा विकार वास्तविक अर्थ को छिपा देता है। हमें लगता है 'मैं आनंदित हूँ' जबकि वास्तव में 'मैं आनंद स्वरूप हूँ'।

स्वामीजी ने बताया कि पंचकोष विवेक जानने के लिए तैत्तिरीय उपनिषद में भृगु व छान्दोग्य उपनिषद में इन्द्र की जिज्ञासा पर भी विस्तृत संवाद है। अंत में स्वयं को जानने के लिए स्वामीजी ने वेदांत का फार्मूला दिया कि सब निषेध करते जाओ, जो अंत में बचा, वही साक्षी तुम हो।

इस व्याख्यान को न्यास के यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है। न्यास द्वारा प्रतिमाह शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है जिसमें विश्व के प्रतिष्ठित विद्वान-संत जीवनोपयोगी आध्यात्मिक विषयों पर व्याख्यान देते हैं।

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