छत्तीसगढ़

झाडफूंक से नहीं, जागरूकता से हारेगा कोरोना

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रायपुर
कोरोना के कहर से पूरा देश लगातार जूझ रहा है। भले ही आंकड़ों के कम होने पर देश के कई राज्य अनलॉक की प्रक्रिया अपना रहे हैं लेकिन स्थिति के अभी भी सामान्य होने की उम्मीद दूर-दूर तक नज? नहीं आ रही है। पहले डेल्टा और अब डेल्टा प्लस वैरियंट ने सरकार से लेकर वैज्ञानिकों तक की चिंता बढ़ा दी है। लगभग एक साल से लोग कोरोना से जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं। कुछ महीने पहले ही देश में कोरोना का भयंकर प्रकोप लोगों के बीच इस कदर टूटा है कि वह अपनों को खोने के बाद उन्हें सम्मानपूर्वक आखिरी विदाई भी नहीं दे सके।

देश में हर दिन आंकड़ों की रिपोर्ट आती हैं, लेकिन इसका दर्द केवल वही इंसान समझ सकता है, जिसके अपने भी इन आंकड़ों में शामिल हैं। हालांकि केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारें इस महामारी के कारण बिगड़े हालातों से लड?े में अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहे थे, लेकिन हमारा कमजोर स्वास्थ्य ढांचा इससे लड?े में नाकाफी साबित हुआ, जिससे मौत का आंकड़ा तेजी से बढ़ा। इस दौरान कई राज्यों के उच्च न्यायलयों और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका भी सराहनीय थी, तो कई संस्थाओं और व्यक्तिगत रूप से लोगों ने भी आगे बढ़ कर इंसानियत को बचाने में अपना अतुलनीय योगदान दिया था। कोरोना की दूसरी लहर ने शहरों के साथ साथ देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपना रौद्र रूप दिखाया है। जिसके कारण देश में मौत का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ा है। पहली लहर की तुलना में इस बार ग्रामीण क्षेत्र भी कोरोना की चपेट में आए। एक आंकड़े के मुताबिक देश के 13 राज्यों के ग्रामीण इलाकों में कोरोना वायरस फैला था। इनमें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश प्रमुख है। संक्रमण के नये मामलों में यहां के ग्रामीण इलाकों ने तो शहरी क्षेत्रों को पीछे छोड़ दिया है। बढ़ते आंकड़े इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि तत्काल किसी ऐसे उपायों को अपनाने की जरूरत है, जिससे आने वाली संकट पर समय रहते काबू पाया जा सके। कोरोना की दूसरी लहर के थमने से पहले ही उसकी तीसरी लहर की चर्चा अपने शबाब पर है, जिसमें बच्चों में संक्रमण का खतरा बताया जा रहा है। हालांकि अभी भी इस मुद्दे पर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद ऐसी हालत में जरूरत है कि कोरोना की दूसरी लहर की आपदा से सीख लेकर आने वाले संकट की तैयारी की जाए।

कोरोना की दूसरी लहर ने शहरों के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है। गांवों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की कमी ने इस संकट को और भी गहरा कर दिया था। इसके अलावा जागरूकता की कमी ने भी महामारी को अपना पैर पसारने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। पूरे देश में लगभग साढ़े 6 लाख गांव हैं, जिनमें 90 करोड़ की आबादी रहती है। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों ने स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया था। इन आंकड़ों में वैसे लोग शामिल थे, जिन्होंने अपना टेस्ट करवाया था। हालांकि अब भी ऐसे कितने लोग हैं, जिनका टेस्ट तक नहीं हुआ। वहीं अधिकांश लोगों को कोरोना के लिए करवाए जाने वाले टेस्ट्स की जानकारी तक नहीं थी। गांवों में प्रशिक्षित लैब कर्मी, डॉक्टर, सुविधाओं से लैस अस्पताल, आॅक्सीजन और दवाइयों की कमी को अनदेखा किये जाने के कारण ही समस्या को इस स्तर तक पहुंचाया है। इसके अलावा जागरूकता की कमी के कारण भी लोग कोरोना के लक्षणों से अंजान थे, जिस कारण सर्दी-खांसी के लिए मामूली कफ सिरप का सहारा ले रहे हैं। वहीं ग्रामीणों के लिए उनके दवाई दुकानदार ही डॉक्टर हैं, जिनकी निगरानी में रहकर वह अपना आधा अधूरा इलाज करवा रहे थे।

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