कोरोना महामारी से 82 प्रोफेसर और कर्मचारियों का निधन, दी अनुकंपा नियुक्ति
भोपाल
उच्च शिक्षा विभाग के कालेज और विश्वविद्यालय में कार्यरत करीब 82 प्रोफेसर और कर्मचारियों कोरोना संक्रमण से निधन हुआ है। उनमें से 16 मृतकों के पारिवारिक सदस्यों को अनुकंपा दी जा चुकी हैं। करीब दो दर्जन आवेदन विभाग और पहुंच गए हैं। इसमें इंदौर के प्रोफेसर की धर्मपत्नी ने अनुकंपा नियुक्ति लेने से इंकार कर दिया है। शासन उन्हें एक मुश्त राशि अदा करता है तो उन्हें नियुक्ति की जरूरत नहीं पड़ेगी।
कोरोना महामारी से 82 प्रोफेसर और कर्मचारियों का निधन हुआ है। उनके एक-एक पारिवारिक सदस्यों को अनुकंपा नियुक्ति दी जा रही है। प्रोफेसर राजपत्रित पद है। इसलिए उनके परिवारिक सदस्य राजपत्रित नियुक्ति ही चाहते हैं। इसलिए उन्होंने नौकरी छोडना शुरू कर दिया है। वहीं कुछ प्रोफेसर और कर्मचारियों में नौकरी करने की योग्यता रखने वाला ही नहीं हैं। इसलिए विभाग को उन्हें नौकरी देने के लिये वारिसों के बल्कि होने तक का इंतजार करना होगा। प्रोफेसरों का कहना है कि विभाग उनके साथ अन्याय कर रही है। राजपत्रित का वेतनमान काफी बेहतर होता है। उन्हें तृतीय श्रेणी में बेहतर वेतन नहीं मिल सकता है। जबकि वे राजपत्रित नियुक्ति की योग्तया रखते हैं। विभाग जीएडी की नियमों का हवाला देता है।
82 प्रोफेसर और कर्मचारियों का निधन हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी आर्ट एंड कार्मस कालेज इंदौर के प्रो. संजय जैन राजनीति शास्त्र का निधन हुआ, तो उनकी धर्मपत्नी ने अनुकंपा नियुक्ति लेने से इंकार कर दिया है। विभाग को ऐसे में उन्हें पति प्रो. जैन की पांच साल का वेतन एकमुश्त अदा करना चाहिए। विभाग ने 16 आवेदनों पर अनुकंपा नियुक्तियां कर दी हैं। वर्तमान में करीब दो दर्जन आवेदन और पहुंच चुके हैं। उनका निराकरण किया जा रहा है। रिक्त पदों को देखते हुये विभाग उन्हें भी अगले माह तक नियुक्ति देगा।
विभाग जीएडी के 2014 के नियम में दी गई नियम भूल गया। इसमें कहा गया है कि अनुकंपा नियुक्ति नहीं लेने पर विभाग मृतक के अंतिम वेतन का पांच साल का वेतन एक मुश्त अदा करेगा। प्रोफेसरों का सातवें वेतनमान में सवा लाख से दो लाख तक का वेतन निर्धारित किया गया है। ऐसे में विभाग को हरेक प्रोफेसर के लिये 80 लाख से सवा करोड़ रुपये तक का भुगतान करना होगा। जबकि अनुकंपा नियुक्ति में उन्हें चालीस से साठ हजार रुपये तक का भुगतान मासिक करना होगा। इसमें उन्हें पेंशन का लाभ भी नहीं मिलेगा। इसलिए विभाग को करोड़ों रुपये का भुगतान नहीं करना पडे, जिसके लिये शासन उन्हें फटाफट अनुकंपा नियुक्ति देकर अपनी जिम्मेदारी पूर्ण करने का दावा कर रहा है। जबकि विकल्प चुनने का अधिकार मृतक के परिवार का होना चाहिए, लेकिन शासन नियुक्ति ही कराने पर आमाद है।