ओरछा के राजा मधुकरशाह की कृष्ण भक्ति ने डाली जन्माष्टमी पर वृन्दावन यात्रा की नींव
टीकमगढ़
ओरछा मध्यप्रदेश का गौरव है। धार्मिक दृष्टि से यह जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही पर्यटन और पुरातत्व की दृष्टि से इस स्थान की साख अलग सी है। यहां पर रोजाना हजारों श्रद्धालुओं एवं पर्यटनों की भीड़ देखने को मिलती है। यहां के राजा स्वंय भगवान श्रीराम है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर बुन्देलखण्ड के लोगों की ब्रज यात्रा करने की परंपरा करीब पांच सौ वर्ष पुरानी है। इसके पीछे एक धार्मिक कथा बताई जाती है।
बुन्देलखण्ड की धार्मिक नगरी ओरछा पंद्रहवीं सदी के मध्य से सोलहवीं सदी के प्रारंभ तक कृष्ण भक्ति का बढ़ा केन्द्र रही है। यहां के वीरान हो चुके जुगल किशोर मंदिर की भव्यता इस बात की गवाह है कि पंद्रहवीं सदी मे भगवान श्रीकृष्ण जी का यह मंदिर रामराजा मंदिर से किसी भी मायने मे कम नही था। पर जब भगवान श्रीरामराजा सरकार ओरछा मे विराजमान हो गये तो जुगल किशोर के विग्रहो की पन्ना रियासत मे स्थापना कर दी थी।
बुन्देलखण्ड मे जन्माष्टमी पर की जाने वाली ब्रज की यात्रा के पीछे की कहानी बजाई जाती है कि अष्टमी पर वृन्दावन जाने को लेकर ओरछा के महाराजा मधुकरशाह और महारानी कुंअर गणेश के बीच तकरार हो गई थी। रानी अयोध्या जाना चाहती थी और राजा वृन्दावन। तब मधुकरशाह ने रानी को चुनौती दी थी कि उनकी भक्ति को वे तभी सार्थक मानेंगे जब वह अयोध्या से अपने इष्ट श्रीराम को ओरछा लेकर आऐं। महारानी श्रीराम को लेकर ओरछा आई और राजा ने महारानी को जुगल किशोर मंदिर मे अपने इष्ट भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करवाकर अपनी कृष्ण भक्ति का परिचय दिया था।
इस तरह राम और कृष्ण दोनों को एक ही स्वरूप मानते हुऐ दोनो की भक्ति स्वीकार किया था। बुन्देलखण्ड के लोगों का मानना है कि अगर वृन्दावन की जन्माष्टमी यात्रा को लेकर यह तकरार न हई होती तो शायद आज भगवान श्री रामराजा सरकार बुुन्देलखण्ड के ओरछा मे विराजमान न होते। इसी भक्ति भावना के चलते बुन्देलखण्ड के हजारों लोग हर साल जन्माष्टमी पर ब्रज जाते है। पंद्रहवी सदी मे ओरछा बुन्देलखण्ड मे कृष्ण भक्ति का प्रमुख केन्द्र था। ओरछा के जुगल किशोर एवं राधाबिहारी के विशाल मंदिर इसके साक्षी है। यहां के मधुकरशाह कृष्ण उपासक थे। जबकि उनकी महारानी कुंअर गणेश रामभक्त थी।
दोनों की अपने इष्ट को लेकर अधिकांश तकरार हो जाती थी। भांदो का महीना था ओरछा नगर कृष्ण भक्ति मे सरावोर था, मधुकरशाह जन्माष्टमी पर मथुरा वृन्दावन जाने की तैयारी कर रहे थे। उन्होेंने महारानी से झूला झांकी के दर्शन करने ब्र्रज चलने को कहा तो महारानी ने कहा कि वह पहले अयोध्या जाने की तैयारी कर चुकी है। इसके बाद दोनों भक्ति और इष्ट को लेकर तकरार हो गई। महाराजा ने रानी को चुनौती देते हुऐ कहा कि अगर श्रीराम के प्रति तुम्हारी सच्ची भक्ति है तो उन्हें ओरछा लेकर आओ। महाराजा ब्रज यात्रा पर चले गये और महारानी अवध के लिए प्रस्तान कर गई। घोर तपस्या करने के बाद वह श्रीराम को ओरछा लाई और वहां पर राजा के रूप मे विराजमान कर दिया । भगवान श्रीराम के ओरछा आने के बाद यह राम भक्तों का बहुत बड़ा केन्द्र बन गया। पर जन्माष्टमी की ब्रज यात्रा महाराजा मधुकरशाह उसी उत्साह और भक्तिभाव से करते रहे। जो एक परंपरा बन गई तथा आज भी बुन्देलखण्ड मे इसका निर्वाह किया जा रहा है।