उच्च शिक्षा विभाग : PHD करने प्रोफेसर्स को नहीं मिलेगी स्टडी लीव
भोपाल
प्रदेश के प्रोफेसर स्टडी लीव के नाम पर फॉरेन ट्रिप कर आते हैं। यहां तक अध्ययन अवकाश के बहाने वे अपनी फैमिली के साथ हिल स्टेशन का लुत्फ लेते हैं। इसलिए उच्च शिक्षा विभाग ने स्टडी लीव की व्यवस्था को खत्म कर दिया है। अब प्रोफेसरों को पीएचडी और कोर्स वर्क करने के लिए स्वयं के संचित अवकाश लेने होंगे।
उच्च शिक्षा विभाग अपने प्रोफेसरों को पीएचडी करने करीब तीन साल की स्टडी लीव लेता है। प्रोफेसरों ने स्टडी लीव का फायदा काफी गलत तरीके से उठाया है। वे पीएचडी से ली गई लीव में विदेश यात्रा, फैमिली टूर के अलावा हिल स्टेशन का सैर सपाटा करते रहे हैं। लीव पर लौटने के बाद प्रोफेसरों की पीएचडी तक पूरी नहीं होती थी, इससे विभाग को काफी नुकसान होता है।
लीव पर गए प्रोफेसर की कक्षाओं को पढ़ाने के लिए विभाग को दूसरे प्रोफेसर की व्यवस्था एडोक या स्थानांतरण से करना होती थी। इससे विभाग को काफी आर्थिक नुकसान होता है। इसलिए विभाग ने 46 असिस्टेंड प्रोफेसरों की सूची जारी कर उन्हें पीएचडी और कोर्सवर्क करने की स्वीकृति दे दी है। उन्हें दो शर्तों में बांध दिया है कि वे स्टडी लीव नहीं मांगेंगे और उनके पीएचडी और कोर्सवर्क करने पर अध्ययन व्यवस्था प्रभावित नहीं होगी।
पीएचडी करने पहले साल की स्टडी लीव, इसके बाद एक माह का एक्शटेंशन और थीसिस जमा नहीं होने की दशा में अवकाश में छह माह का बढ़ोतरी कर हो जाती है। सरकार का ऐसा तर्क है कि पीएचडी करने से शासन को कोई फायदा नहीं होता है। क्योंकि पीएचडी से प्रोफेसर को व्यक्तिगत लाभ होता है। यहां तक उन्हें तीन से पांच वेतनवृद्धि मिल जाती है। इसलिए शासन उन्हें स्टडी लीव देकर स्वयं का नुकसान क्यों करे। इसलिए प्रोफेसरों को पीएचडी और कोर्सवर्क स्वयं के अवकाश पर करना होंगे।
वर्तमान में कोरोना संक्रमण पूरे देश में छाया हुआ है। इससे प्रोफेसर जहां कोर्सवर्क की कक्षाएं आॅनलाइन ले सकते हैं। वहीं वे अपने स्टूडेंट की कक्षाएं आॅनलाइन लगा सकते हैं। यहां तक पीएचडी कराने वे अपने सुपरवाईजर से आॅनलाइन मार्गदर्शन हासिल कर सकते हैं।