आॅक्सीजन ढूूंढते रहे परिजन इधर संक्रमितों ने तोड़ा दम
भोपाल
राजधानी में कोरोना के मरीजों के कारण कोहराम मचा हुआ है। ज्यादा मरीजों के कारण अस्पतालों में जगह कम पड़ रही है। विशेषकर आॅक्सीजन सपोर्टेड बेड और वेंटिलेटर न मिल पाने के कारण असमय मरीजों की मौतें हो रही हैं। सागर से गंभीर अवस्था में भोपाल रेफर किए गए 35 वर्षीय मरीज को वेंटिलेटर नहीं मिल सका।
परिजन घंटों राजधानी के अस्पतालों में लेकर भर्ती करने के लिए भटकते रहे आखिरकार भोपाल में बिना इलाज मुकेश जैन की मौत हो गई। यही स्थिति राजधानी के 60 वर्षीय राजेन्द्र गुप्ता के साथ बनी। राजेन्द्र के कोरोना संक्रमित होने पर उनकी स्थिति बिगड़ी। परिवारजनों ने दो दिनों तक आॅक्सीजन बेड के लिए अस्पतालों में प्रयास किए लेकिन बिस्तर नहीं मिल पाया आखिरकार गुरूवार को उनकी मौत हो गई। परिवारजनों का आरोप है कि सरकारी कॉल सेंटर और पोर्टल से बिस्तरों की जानकारी नहीं मिल पाई। जिन अस्पतालों के नंबर जारी किए गए हैं उनमें से अधिकांश पर कोई रिसीव ही नहीं करता।
शुक्रवार सुबह कोलार के गेहूंखेडा स्थित महावीर अस्पताल में आॅक्सीजन खत्म हो गई। अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों के परिजनों को अस्पताल की ओर से सूचना देकर अन्य जगह शिफ्ट कराने को कहा। परिजन रेखा श्रीधर ने बताया कि उनके पिताजी को यहां भर्ती किया गया था। अचानक फोन पर ये बताया गया कि आॅक्सीजन खत्म हो गई है। अब ऐसे में समझ नहीं आ रहा कि किस अस्पताल में एडमिट कराएं।
कोलार राजधानी में सबसे बड़ा हॉटस्पॉट है यहां लगातार बढ़ रहे मरीजों के कारण दहशत फैली हुई है। कोलार में कई साल से बंद पडेÞ एडवांस मेडिकल कॉलेज को पिछले साल कोविड सेंटर बनाया गया था। यहां पर आॅक्सीजन पाइप लाइन के साथ ही इलाज के लिए संसाधन और मशीनरी भी मौजूद होने के बावजूद अफसर इस अस्पताल की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। यहां 350 बिस्तर मौजूद हैं। कोलार के स्थानीय निवासियों ने इस मेडिकल कॉलेज को कोविड सेंटर बनाने की मांग की है।
राजधानी के अस्पतालों के फुल होने के कारण कोरोना के अलावा अन्य बीमारियों के मरीजों को इलाज के लिए काफी दिक्कतें हो रही हैं। दूसरी तरफ कोरोना के बढ़ते मामलों के पीछे बड़ी वजह सामने आ रही है कि कई लोग हल्के लक्षण पर कोरोना के सैम्पल कराने से बच रहे हैं। वे सिर्फ मेडिकल स्टोर से सर्दी, खांसी, बुखार की दवा लेकर काम चला रहे हैं।
ऐसे में कुछ को तो राहत मिल जाती है, लेकिन कई लोग हैं, जिनको राहत नहीं मिलती। बाद में कोविड टेस्ट कराने ही पड़ते हैं। ऐसे 80 फीसदी केसों में रिपोर्ट पॉजिटिव आ रही है। इस बीच में वे कई अन्य लोगों में कोरोना का संक्रमण बढ़ा देते हैं। अगर ऐसे लोग लक्षण के पहले दिन टेस्ट कराते तो करीबी, रिश्तेदारों व पड़ोसियों में कोरोना वाहक न बनते। कलेक्टोरेट में कोरोना पर रोज समीक्षा होती है। अब यही मुद्दा सामने आ रहा है कि व्यक्ति समय रहते फीवर क्लीनिक पर टेस्ट कराए तो काफी हद तक संक्रमण पर अंकुश लग सकता है।
एक सप्ताह में आठ हजार लोग अलग-अलग फीवर क्लीनिक पर सैम्पल कराने पहुंचे हैं, उनमें से दो हजार लोग वे थे, जिनको पहले लक्षण आए, लेकिन वे गए नहीं। बाद में परेशानी बढ़ी तो सैम्पल कराया।
मेडिकल स्टोर्स पर दवा देने के बाद न तो उनसे दवा के पर्चे मांगे गए और न उन मरीजों के नाम नंबर नोट किए गए। पुराने शहर के दवा खाने में भी ऐसे ही दवा दी जाती रही है, जबकि इस संबंध में चार माह पहले ही स्वास्थ्य विभाग ने आदेश जारी किया है। पुराने शहर के फीवर क्लीनिक में अगर गैस राहत के क्लीनिक छोड़ दें तो वहां अधिकांश लोग टेस्ट नहीं करा रहे हैं।